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किसानों की कपास को नहीं मिल रहा सरकार का समर्थन

खींवसर (नागौर): नागौर जिले में कपास का उत्पादन हर साल 10 लाख क्विंटल से भी अधिक होता है, लेकिन इस साल किसानों को कपास के अच्छे भाव नहीं मिल रहे हैं। सरकार ने कपास के समर्थन मूल्य में बहुत कम बढ़ोतरी की है, जिससे किसानों को कपास बेचने में मुश्किलें आ रही हैं।

समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी का असर

इस बार सरकार ने कपास के समर्थन मूल्य में केवल 501 रुपये की बढ़ोतरी की है, जिससे लोंग, स्टेपल कपास का समर्थन मूल्य 7521 रुपये प्रति क्विंटल और मिडियम स्टेपल कपास का समर्थन मूल्य 7121 रुपये प्रति क्विंटल तय किया गया है। जबकि बाजार में कपास के भाव 8100 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच चुके हैं। ऐसे में किसान अपनी फसल को सरकारी खरीद केन्द्र पर नहीं बेच पा रहे और निजी मिलों में बेच रहे हैं, जहां अधिक कीमत मिल रही है।

खरीद केन्द्रों पर कोई गतिविधि नहीं

कपास के समर्थन मूल्य के कारण जिले में कई जगहों पर समर्थन मूल्य खरीद केन्द्र भी नहीं खुले हैं, और जहां खुले हैं, वहां कम भाव मिलने के कारण किसानों ने आवेदन भी नहीं किए। सरकार द्वारा बढ़ाई गई कीमत किसानों के लिए बहुत कम है, जिससे वे अपनी फसल को निजी मिलों में बेच रहे हैं।

किसानों में नाराजगी

किसान नेता भागीरथ डूडी का कहना है कि जब बाजार में कपास के भाव 8000 रुपये से अधिक हैं, तो सरकार को समर्थन मूल्य बढ़ाकर किसानों को फायदा देना चाहिए था। लेकिन सरकार ने हमेशा समर्थन मूल्य में केवल नाममात्र की बढ़ोतरी की है, जिससे किसान निराश हैं।

कम उत्पादन इस बार

इस बार कपास की बुवाई पिछले साल की तुलना में 50 प्रतिशत कम की गई थी और उत्पादन में भी 25 प्रतिशत की गिरावट आई है। फिर भी, कपास की अधिक मांग के कारण किसानों को अपनी फसल मीलों में बेचनी पड़ रही है।

किसानों को अपनी मेहनत का उचित दाम नहीं मिल रहा है, और सरकार की ओर से कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं, जिससे उनकी परेशानी बढ़ती जा रही है।

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