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साल 2025 में उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में महाकुंभ आयोजित होगा। यह 13 जनवरी से शुरू होकर 26 फरवरी तक चलेगा। आखिरी बार महाकुंभ 2013 में प्रयागराज में हुआ था। कुंभ मेले का आयोजन 12 साल के अंतराल पर होता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि कुंभ मेले के चार प्रकार होते हैं? ये हैं – कुंभ, अर्धकुंभ, पूर्ण कुंभ और महाकुंभ। इन मेलों का आयोजन ज्योतिषीय गणनाओं और ग्रहों की स्थिति के आधार पर किया जाता है। आइए जानते हैं इनका अंतर और महत्व।
1. कुंभ मेला
कुंभ मेला हर 12 साल में आयोजित होता है। यह भारत के केवल चार स्थानों पर मनाया जाता है –
- हरिद्वार: गंगा नदी के किनारे।
- उज्जैन: क्षिप्रा नदी के तट पर।
- नासिक: गोदावरी नदी के तट पर।
- प्रयागराज: गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम पर।
2. अर्धकुंभ मेला
यह कुंभ मेला हर 6 साल के बाद आयोजित होता है। इसका आयोजन केवल दो स्थानों – हरिद्वार और प्रयागराज – में किया जाता है।
3. पूर्ण कुंभ मेला
पूर्ण कुंभ हर 12 साल में केवल प्रयागराज में आयोजित होता है। इसमें करोड़ों श्रद्धालु शामिल होते हैं और संगम में स्नान कर धर्म लाभ प्राप्त करते हैं।
4. महाकुंभ मेला
महाकुंभ मेला हर 144 साल में एक बार होता है। इसका आयोजन सिर्फ प्रयागराज में किया जाता है। इसे 12 पूर्ण कुंभ मेलों के बाद मनाया जाता है, इसलिए इसे अत्यधिक खास माना जाता है।
कुंभ मेले का ज्योतिषीय महत्व
कुंभ मेले का आयोजन ग्रहों और राशियों की स्थिति के अनुसार होता है। इसके लिए ज्योतिष और अखाड़ों के प्रमुख स्थान का निर्धारण करते हैं।
- हरिद्वार: जब बृहस्पति कुंभ राशि में और सूर्य मेष राशि में होता है।
- उज्जैन: जब सूर्य मेष राशि में और बृहस्पति सिंह राशि में होता है।
- नासिक: जब सूर्य और बृहस्पति दोनों सिंह राशि में होते हैं।
- प्रयागराज: जब बृहस्पति वृषभ राशि में और सूर्य मकर राशि में होता है।
कुंभ मेले का आयोजन धर्म, ज्योतिष और संस्कृति का एक अनोखा संगम है, जो लाखों श्रद्धालुओं को आस्था के इस महायज्ञ में भाग लेने का अवसर प्रदान करता है।