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जयपुर में किशन बाग सैंड ड्यून्स पार्क में आयोजित “द काइंडनेस मील” कार्यशाला का उद्देश्य राजस्थान की समृद्ध खाद्य परंपरा को संरक्षित करना था। यह कार्यक्रम जयपुर आर्ट वीक के तहत हुआ और इसमें पारंपरिक खाद्य पदार्थों को फिर से जीवंत करने की कोशिश की गई।
इस कार्यक्रम में प्रतिभागियों को राजस्थान के प्राचीन अनाज, देशज पौधों और पारंपरिक व्यंजनों के बारे में बताया गया। इसके जरिए जैव विविधता और पारिस्थितिकी के महत्व को भी समझाया गया। कार्यशाला का मकसद विलुप्त हो रही सामग्रियों और उनकी पारिस्थितिकी को फिर से जागरूक करना था, ताकि ये धरोहरें सुरक्षित रह सकें।
खाद्य संस्कृति और विलुप्त होते स्वाद
खाद्य शोधकर्ता दीपाली ने बताया कि राजस्थान के प्राचीन अनाज सिर्फ पोषण के लिए ही नहीं, बल्कि पर्यावरण संतुलन के लिए भी महत्वपूर्ण हैं। हालांकि इनका उपयोग आजकल घटता जा रहा है, इस लिए नई पीढ़ी को इनके महत्व को समझने और इनका पुनः उपयोग बढ़ाने की जरूरत है।
खाद्य और प्रकृति का संबंध
वरिष्ठ प्रकृतिवादी मेनाल ने भी बताया कि हमें पौधों और अनाजों के अलावा उनके पारिस्थितिकी और जैव विविधता को भी समझना चाहिए। इस कार्यशाला में प्रतिभागियों को खाद्य और प्रकृति के गहरे संबंध के बारे में जानकारी दी गई।
जैव विविधता की ओर कदम
कार्यशाला में राजस्थान के पारंपरिक व्यंजनों के साथ-साथ विलुप्त हो रहे सामग्रियों के उपयोग पर भी चर्चा हुई। इन्हें सिर्फ स्वाद के रूप में नहीं, बल्कि एक समृद्ध इतिहास के हिस्से के रूप में देखा गया।
संस्कृति और प्रकृति का संगम
एक प्रतिभागी ने कहा, “यह कार्यशाला सिर्फ अनुभव नहीं थी, बल्कि एक महत्वपूर्ण संदेश भी था। हमे अपने पारंपरिक खाद्य पदार्थों और उनके स्रोतों को फिर से अपनाना चाहिए।” वहीं एक और प्रतिभागी ने इसे राजस्थान के स्वादों और परंपराओं को संरक्षित करने की दिशा में एक ज्ञानवर्धक कदम बताया।