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राजस्थान में गणगौर पर्व पूरे उत्साह से मनाया जाता है, लेकिन शेखावाटी के बड़ागांव का गणगौर मेला बेहद खास है। यहां पिछले 300 सालों से यह मेला भरता आ रहा है।
ईसर की सवारी निकलती है सबसे पहले
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अन्य जगहों पर सिर्फ गणगौर की सवारी निकलती है, लेकिन बड़ागांव में सबसे पहले ईसर की सवारी निकलती है।
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इसके बाद बड़ी संख्या में सजी-धजी गणगौर की झांकी निकाली जाती है।
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खास बात यह है कि किस घर से ईसर की सवारी निकलेगी, इसकी बुकिंग एक साल पहले करनी पड़ती है।
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गांव में ईसर एक ही घर से निकलते हैं, लेकिन जितने घरों में गणगौर का उद्यापन (उजीणा) किया जाता है, उतनी ही गणगौर निकाली जाती हैं।
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साल 2016-17 में एक साथ 27 गणगौर निकली थीं।
गणगौर के दिन मायके से आते हैं उपहार
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गणगौर के दिन महिलाओं के मायके पक्ष से उनके ससुराल वालों के लिए कपड़े, मिठाई और उपहार लाए जाते हैं।
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यह परंपरा वर्षों से चली आ रही है।
ईसर का श्रृंगार करते हैं पुरुष
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गणगौर का सोलह श्रृंगार महिलाएं करती हैं, लेकिन ईसर का श्रृंगार पुरुष करते हैं।
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यह परंपरा कई सालों से चली आ रही है।
31 मार्च को मनाई जाएगी गणगौर
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इस साल गणगौर का व्रत 31 मार्च को रखा जाएगा।
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तृतीया तिथि के क्षय होने के कारण यह पर्व द्वितीया युक्त तृतीया में मनाया जाएगा।
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सिंजारा पर्व एक दिन पहले मनाया जाएगा।
गोपीनाथ मंदिर में होती है गणगौर की पूजा
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गांव के अशोक सिंह शेखावत ने बताया कि गणगौर को पहले गोपीनाथ मंदिर में लाया जाता है।
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शाम करीब 3:15 बजे गणगौर की सवारी गांव के मुख्य रास्तों से होती हुई मेला मैदान तक पहुंचती है।
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पूजने वाली गणगौर को महिलाएं आंसुओं के साथ कुएं में विसर्जित करती हैं।
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बड़ी गणगौर को वापस लाया जाता है।
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ईसर पहले हर गणगौर को उसके घर तक छोड़ते हैं, फिर आखिर में खुद वापस लौटते हैं।
बड़ागांव का गणगौर मेला अपनी अनोखी परंपराओं की वजह से पूरे प्रदेश में प्रसिद्ध है।