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जयपुर में 10 किलो सोने से बना ताजिया: 21 हाथियों की सलामी दी जाती है, बीमारी से ठीक होने पर राजा रामसिंह ने बनवाया था

मोहर्रम पर आज राजस्थान में ताजियों का जुलूस निकाला जाएगा। जयपुर में भी छोटे-बड़े लगभग 250 ताजियों का जुलूस अलग-अलग इलाकों से होता हुआ कर्बला मैदान पहुंचेगा, जहां इन्हें दफन किया जाएगा। इनमें दो ताजिये जयपुर की विरासत का हिस्सा हैं, जो सोने-चांदी के बने हैं।

साल 1868 में जयपुर राजघराने ने सोने का तामीर ताजिया समाज को गिफ्ट किया था। इसमें 200 किलो शीशम की लकड़ी लगी है। सिटी पैलेस में रखे एक ताजिये में करीब 10 किलो सोना और 60 किलो चांदी लगी है। मोहर्रम पर इस ताजिये को 21 हाथियों की सलामी दी जाती है। इसे राजा रामसिंह ने अपनी बीमारी से ठीक होने पर बनवाया था।

सोने का ताजिया

तामीर ताजिये के खिदमतगार इमामुद्दीन ने बताया कि सन् 1868 में बने इस ताजिये को 156 साल से देखा जा रहा है। इसे जयपुर के महावतों के मोहल्ले की देखरेख में रखा गया है। ताजिया सोने और 200 किलो शीशम की लकड़ी से बना है। यह आज भी अपने मूल रूप में कायम है। हर साल 2 सरपंच और 11 पटेल की देखरेख में यह ताजिया निकाला जाता है।

साल में सिर्फ दो बार निकाला जाता है

इमामुद्दीन ने बताया कि वह 50 साल से इस ताजिये की देखभाल कर रहे हैं। इस ताजिये को मोहर्रम पर आगरा रोड स्थित कब्रिस्तान लेकर जाते हैं। इसे कर्बला मैदान नहीं ले जाया जाता। राजा-महाराजाओं के समय से ही इसे कब्रिस्तान ले जाया जाता है। वहां से ठंडा करके हरफूल वापस लाया जाता है। इसके बाद इसकी जरी (रस्म के रेशमी धागे) उतार दी जाती है और इसे महावतों के मोहल्ले में इमामबाड़े में सालभर कपड़े से ढक कर रखा जाता है। मोहर्रम से पहले मेहंदी की रस्म और कत्ल की रात को ताजिये को जनता के बीच घाटगेट लाया जाता है।

सिटी पैलेस की विरासत का ताजिया

दूसरा ताजिया सिटी पैलेस में रखा जाता है। इसे अब्दुल सत्तार देखरेख करते हैं। यह ताजिया सन् 1860 में राजा रामसिंह ने बनवाया था। जब राजा रामसिंह बीमार हुए थे तो एक फकीर की राय पर स्वस्थ होने पर उन्होंने यह ताजिया बनवाया था। यह ताजिया करीब 200 साल पुराना है। इसे सिटी पैलेस में रखा जाता है। अब्दुल सत्तार की तीन पीढ़ियां इस ताजिये को संभाल रही हैं।

कुरान की आयतें और कर्बला का नक्शा

इस ताजिये को मोहर्रम से पहले पांच दिन त्रिपोलिया गेट पर रखा जाता है। मोहर्रम के दिन ताजिये को 21 हाथियों की सलामी दी जाती है। जयपुर शहर में सबसे पहले यही ताजिया उठाया जाता है। इसके बाद ताजियों का जुलूस एक साथ शहर के अलग-अलग हिस्सों से गुजरता हुआ कर्बला पहुंचता है। इस ताजिये पर कुरान की आयतें लिखी हुई हैं और कर्बला का नक्शा भी अंकित है। इसे बनाने के लिए खास शीशम की लकड़ी का इस्तेमाल किया गया है। राजा रामसिंह के समय में जो लोग ताजिये को उठाने का काम करते थे, उनके परिवार के लोग आज भी इस ताजिये को उठाते हैं।

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