एससी-एसटी आरक्षण के कोटे में अब अलग से एक कोटा देने का सुप्रीम कोर्ट का फैसला राज्य सरकारों के लिए नई राहें खोल रहा है। राज्य सरकार अपने विवेक से एससी और एसटी, दोनों कैटेगरी में वंचित जातियों को अलग से कोटा दे सकती है। हालांकि, इस निर्णय को लागू करने में कई चुनौतियां होंगी और जातियों के बीच संघर्ष की संभावनाएं भी बढ़ सकती हैं।
राजस्थान में आरक्षण का गणित
राज्य सरकार के वर्तमान नियमों के अनुसार:
- अनुसूचित जनजाति (ST): 12 प्रतिशत
- अनुसूचित जाति (SC): 16 प्रतिशत
- पिछड़ा वर्ग (OBC): 21 प्रतिशत
- अति पिछड़ा वर्ग (MBC): 5 प्रतिशत
- आर्थिक पिछड़ा वर्ग (EWS): 14 प्रतिशत
राजस्थान में मेघवाल, बैरवा, नायक, खटीक जैसी जातियों को एससी कोटे का आरक्षण प्राप्त है। वहीं मीणा, मीना, भील, गरासिया जैसी जातियों को एसटी कोटे से आरक्षण मिलता है। दोनों ही कोटे में 70 से अधिक जातियां और कई उपजातियां शामिल हैं।
चुनौतियां और संभावित संघर्ष
राजस्थान सरकार को सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को लागू करने में कई प्रक्रियाओं और चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। जातियों के बीच संघर्ष जैसी विपरीत स्थितियां भी खड़ी हो सकती हैं। यह फैसला प्रदेश की राजनीति पर भी गहरा प्रभाव डालेगा।
एक्सपट्र्स की राय
आरक्षण मामलों के एक्सपट्र्स का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला राजस्थान में कई बदलाव ला सकता है। सरकार को इसे लागू करने के लिए सावधानीपूर्वक कदम उठाने होंगे ताकि सामाजिक संघर्षों से बचा जा सके और सभी वंचित जातियों को न्याय मिल सके।
इस प्रकार, सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला राजस्थान में आरक्षण की स्थिति और सामाजिक संरचना पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकता है। सरकार को इस फैसले को लागू करने के लिए सुविचारित और संतुलित दृष्टिकोण अपनाना होगा।