जयपुर: रेलवे ने स्थानीय रोजगार, व्यापार और उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए दो साल पहले “वन स्टेशन-वन प्रोडक्ट” योजना शुरू की थी, लेकिन राजस्थान में यह योजना अब सफल नहीं हो रही है। इस योजना से रेल यात्री और स्थानीय व्यापारी दोनों ही संतुष्ट नहीं हैं, जिससे कई स्टॉल्स पर ताले लटके हैं और कई सूने पड़े हैं।
योजना की स्थिति: इस योजना का उद्देश्य देशभर के 450 स्टेशनों पर स्थानीय उत्पादों की बिक्री को बढ़ावा देना था, लेकिन यह उत्तर पश्चिम रेलवे के सिर्फ 104 स्टेशनों पर ही चल पाई है। जयपुर में भी यह योजना केवल जयपुर जंक्शन और दुर्गापुरा स्टेशन पर ही चल रही है, जबकि गांधीनगर स्टेशन पर लंबे समय से स्टॉल बंद हैं। जिन स्टेशनों पर स्टॉल्स चल रहे हैं, वहां भी यात्रियों की संख्या बहुत कम है।
नियमों में बदलाव भी नाकाफी: योजना के असफल होने का मुख्य कारण इसके नियम हैं। शुरुआत में स्टॉल्स सिर्फ 15 दिनों के लिए आवंटित किए जाते थे, लेकिन अब इस अवधि को तीन महीने कर दिया गया है। स्टॉल्स के सफल संचालन और उत्पाद की लोकप्रियता के लिए छह महीने या एक साल का समय जरूरी होता है, ताकि उत्पाद की मांग बन सके।
स्टॉल्स पर बिक रहे उत्पाद: इस योजना के तहत सांगानेरी प्रिंट, जयपुरी रजाइयां, बंधेज की साड़ियां, मेटल हैंडीक्राफ्ट, मिट्टी के बर्तन, खादी के कपड़े, मार्बल की मूर्तियाँ, गुलाब जल, गुलकंद, कोटा डोरिया, खिलौने, पापड़ और भुजिया जैसे स्थानीय उत्पाद बेचे जा रहे हैं।
यात्री क्यों नहीं आ रहे: छोटे स्टेशनों पर ट्रेनों के ठहराव का समय बहुत कम होता है, जिससे यात्री खरीदारी के लिए समय नहीं निकाल पाते। जो यात्री नियमित रूप से आते हैं, उनके लिए ये सामान स्थानीय ही होता है। योजना की आवंटन प्रक्रिया में बदलाव की जरूरत बताई जा रही है।