1997 के बाद पहली बार शिरोमणि अकाली दल (अकाली दल) भाजपा के बिना पंजाब निकाय चुनाव लड़ रहा है। यह चुनाव 21 दिसंबर को होने वाले हैं। शहरी क्षेत्रों में पहली बार अकेले चुनाव लड़ रहे अकाली दल को कई इलाकों में प्रत्याशी तक नहीं मिल पाए।
कई नगर निगमों में उम्मीदवार पूरे नहीं
अकाली दल ने पांच नगर निगमों के लिए पर्यवेक्षक नियुक्त किए थे, लेकिन इसके बावजूद कई वार्डों में उम्मीदवारों की कमी रही।
- पटियाला: 55 सीटों पर ही उम्मीदवार उतारे जा सके, जबकि पांच वार्ड खाली रहे।
- लुधियाना: 95 में से 94 सीटों पर उम्मीदवार उतारे गए।
- अमृतसर: 85 में से 67 सीटों पर प्रत्याशी मैदान में हैं।
- जालंधर: यहां स्थिति सबसे खराब रही। 85 सीटों में से केवल 29 सीटों पर अकाली दल उम्मीदवार खड़े कर सका।
जालंधर में अकाली दल की स्थिति चिंताजनक
जालंधर में अकाली दल को भाजपा से अलग होकर चुनाव लड़ने का सबसे अधिक नुकसान हुआ। पार्टी के वरिष्ठ नेता सुखमिंदर सिंह राजपाल ने कहा कि अब तक शहरी क्षेत्रों में अकाली दल भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ता था, जिसमें अधिकांश सीटें भाजपा के पास होती थीं। यही कारण है कि अकाली दल के पास शहरी क्षेत्रों के लिए पर्याप्त उम्मीदवार नहीं हैं।
वरिष्ठ नेताओं की अनुपस्थिति
पार्टी के वरिष्ठ नेता चुनाव प्रचार में सक्रिय नहीं दिख रहे। जालंधर में, अकाली नेता इकबाल ढींडसा की पत्नी ने पार्टी से अलग होकर आजाद उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतरने का फैसला किया है।
अकाली दल का प्रयास
अकाली दल ने कई प्रमुख नेताओं जैसे बिक्रम मजीठिया, हरीश राय ढांडा, बलदेव सिंह खैहरा और अन्य को नगर निगम चुनावों के लिए पर्यवेक्षक नियुक्त किया है। पार्टी का लक्ष्य इन चुनावों में अपनी पकड़ मजबूत करना है, लेकिन भाजपा से अलगाव के कारण उसे शहरी इलाकों में मुश्किलें हो रही हैं।