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भोपाल गैस त्रासदी: पीड़ितों की रिपोर्ट के डिजिटाइजेशन में देरी पर हाईकोर्ट ने सरकार से पूछा सवाल

भोपाल। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों की मेडिकल रिपोर्टों के डिजिटाइजेशन में हो रही देरी पर राज्य सरकार और संबंधित अधिकारियों से गंभीर सवाल किए हैं। कोर्ट ने कहा कि इस मामले में सरकार की गंभीरता पर संदेह है।

मुख्य न्यायाधीश सुरेश कुमार कैत और जस्टिस विशाल जैन की बेंच ने केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग के सचिव और भोपाल स्थित बीएमएचआरसी के निदेशक को निर्देश दिए कि वे एक सप्ताह के भीतर डिजिटाइजेशन की कार्ययोजना तैयार करें। इस मामले की अगली सुनवाई 18 फरवरी को होगी।

मामला क्या है?

साल 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों के उपचार और पुनर्वास के लिए 20 निर्देश दिए थे और एक मॉनिटरिंग कमिटी बनाई थी। इस कमिटी को तीन महीने में हाईकोर्ट को रिपोर्ट प्रस्तुत करनी थी, लेकिन 2015 में एक अवमानना याचिका दायर की गई, जिसमें कहा गया कि कमेटी की अनुशंसाओं को लागू नहीं किया जा रहा है।

सरकार का कहना है कि 2014 से पहले के मेडिकल रिकॉर्ड खराब स्थिति में हैं और एक दिन में केवल 3 हजार पन्नों का डिजिटाइजेशन किया जा सकता है। इसके लिए नेशनल इंफॉर्मेटिक्स सेंटर (NIC) ने प्रस्ताव दिया था, लेकिन यह प्रस्ताव वित्त विभाग के अप्रूवल के लिए रुका हुआ है।

हाईकोर्ट का आदेश

हाईकोर्ट ने सरकार और संबंधित अधिकारियों पर गंभीर आरोप लगाए और कहा कि इस काम में देरी पीड़ितों के हितों के खिलाफ है। कोर्ट ने अधिकारियों को जल्द से जल्द वित्तीय और तकनीकी समस्याओं को हल कर डिजिटाइजेशन की प्रक्रिया शुरू करने का आदेश दिया है।

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