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बिलासपुर हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि अगर पक्के सबूत मौजूद हैं, तो सिर्फ प्रक्रिया में हुई गलतियों के आधार पर मुकदमा रद्द नहीं किया जा सकता। अदालत ने गांजा तस्करी के दोषी शाहबाज अहमद शेख की 20 साल की सजा और 2 लाख रुपये के जुर्माने को बरकरार रखा।
क्या था मामला?
- 5 जनवरी 2020 को पुलिस टीम पामगढ़ (जांजगीर-चांपा) में वाहनों की जांच कर रही थी।
- ओडिशा नंबर की एक स्कॉर्पियो (OD-02BC-7409) को रोकने का इशारा किया, लेकिन चालक ने गाड़ी की स्पीड बढ़ा दी।
- पुलिस ने पीछा कर गाड़ी को भारतीय स्टेट बैंक, पामगढ़ शाखा के पास रोक लिया।
- तलाशी में 217 पैकेटों में 222.8 किलोग्राम (सवा दो क्विंटल) गांजा मिला, जो काले कंबल के नीचे छुपाया गया था।
- चालक शाहबाज अहमद शेख गिरफ्तार हुआ, लेकिन उसका साथी अजय सिंह बघेल फरार हो गया।
निचली अदालत का फैसला
- विशेष अदालत (एनडीपीएस एक्ट), जांजगीर-चांपा ने शाहबाज अहमद शेख को दोषी करार दिया।
- 20 साल की कठोर सजा और 2 लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया।
- आरोपी ने इस सजा के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की।
हाईकोर्ट ने क्यों बरकरार रखी सजा?
- कोर्ट ने कहा कि एनडीपीएस कानून की प्रक्रिया में थोड़ी देरी से मुकदमा अमान्य नहीं होता।
- अगर गांजे की बरामदगी और जब्ती के पक्के सबूत हैं, तो नियमों की मामूली त्रुटियों से आरोपी को राहत नहीं दी जा सकती।
- मजिस्ट्रेट की उपस्थिति जरूरी नहीं थी, क्योंकि गांजा वाहन से बरामद हुआ था।
- आरोपी कोई ठोस सफाई नहीं दे पाया, इसलिए अदालत ने उसकी अपील खारिज कर दी।
निष्कर्ष
बिलासपुर हाईकोर्ट के इस फैसले से साफ है कि अगर किसी मामले में ठोस सबूत हैं, तो सिर्फ प्रक्रियात्मक गलतियों के आधार पर आरोपी को बचने का मौका नहीं मिलेगा। इस फैसले से नशे के खिलाफ सख्त कार्रवाई का संदेश दिया गया है।