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गुइलेन-बैरे सिंड्रोम (GBS) एक दुर्लभ लेकिन गंभीर तंत्रिका संबंधी बीमारी है, जिसमें शरीर की इम्यून सिस्टम (प्रतिरक्षा प्रणाली) गलती से नसों पर हमला करती है। इसके कारण हाथों और पैरों में कमजोरी, झुनझुनी, या कभी-कभी लकवा (पैरालिसिस) हो सकता है।
महाराष्ट्र में बढ़ते GBS के मामले: महाराष्ट्र के सोलापुर जिले में गुइलेन-बैरे सिंड्रोम से एक व्यक्ति की मौत हो गई, जबकि पुणे में इस बीमारी के 100 से ज्यादा मामले सामने आए हैं। यह राज्य में GBS से पहली मौत बताई जा रही है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने पुणे के सिंहगढ़ इलाके में इस पर निगरानी रखने के लिए एक टीम भेजी है।
गुइलेन-बैरे सिंड्रोम क्या है? गुइलेन-बैरे सिंड्रोम एक न्यूरोलॉजिकल (तंत्रिका से जुड़ी) बीमारी है, जिसमें शरीर की इम्यून सिस्टम गलती से परिधीय तंत्रिका तंत्र (जो मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी के बाहर स्थित होता है) पर हमला करती है। यह बीमारी अचानक शुरू होती है, और अगर जल्दी पहचानकर इलाज किया जाए, तो इसके प्रभाव को कम किया जा सकता है।
GBS के लक्षण: WHO के अनुसार, GBS के शुरुआती लक्षण निम्नलिखित हो सकते हैं:
- कमजोरी और झुनझुनी: यह आमतौर पर पैरों से शुरू होकर हाथों और चेहरे तक फैल सकती है।
- मांसपेशियों में दर्द: पीठ, हाथों या पैरों में तेज दर्द हो सकता है।
- लकवा (पैरालिसिस): यह बीमारी गंभीर मामलों में शरीर के अंगों, जैसे हाथों, पैरों और चेहरे को प्रभावित कर सकती है।
- सांस लेने में कठिनाई: छाती की मांसपेशियों में कमजोरी आने पर सांस लेना मुश्किल हो सकता है।
- बोलने और निगलने में परेशानी: इस बीमारी से व्यक्ति के बोलने और खाना निगलने की क्षमता भी प्रभावित हो सकती है।
GBS से बचाव कैसे करें? हालांकि GBS के होने का ठीक कारण स्पष्ट नहीं है, फिर भी निम्नलिखित सावधानियां अपनाकर इससे बचाव किया जा सकता है:
- साफ पानी पिएं: उबला हुआ या बोतलबंद पानी ही पीना चाहिए।
- फल और सब्जियां धोकर खाएं: कच्चे फल और सब्जियों को अच्छे से धोकर खाएं।
- मांस और पोल्ट्री उत्पाद अच्छे से पकाएं: अधपके मांस, अंडे, सीफूड और सलाद से बचें।
- रसोई को स्वच्छ रखें: कच्चे मांस से संपर्क के बाद रसोई की सतह और बर्तन अच्छे से धोएं।
- हाथ धोने की आदत डालें: खाने से पहले और टॉयलेट का इस्तेमाल करने के बाद हाथों को अच्छे से धोएं।
GBS का इलाज और प्रबंधन: गुइलेन-बैरे सिंड्रोम का इलाज जल्दी शुरू करने पर असरदार होता है। इलाज में इम्यूनोथेरेपी (Plasmapheresis या IVIG) शामिल हो सकती है, जो शरीर की प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को नियंत्रित करने में मदद करती है। इसके अलावा, फिजियोथेरेपी से भी मरीज की तंत्रिका कार्यक्षमता को ठीक किया जा सकता है।
निष्कर्ष: गुइलेन-बैरे सिंड्रोम एक गंभीर बीमारी है, लेकिन सही पहचान और समय पर इलाज से इसके प्रभाव को कम किया जा सकता है। पुणे और महाराष्ट्र में बढ़ते मामलों को देखते हुए सतर्क रहना जरूरी है। स्वच्छता और सुरक्षित भोजन की आदतों को अपनाकर इस बीमारी से बचाव संभव है।
अस्वीकरण: यह जानकारी सामान्य मार्गदर्शन प्रदान करती है, यह चिकित्सा सलाह का विकल्प नहीं है। कृपया किसी विशेषज्ञ से परामर्श लें।