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जयपुर। राजस्थान की बिजली कंपनियां पहले से ही घाटे में चल रही हैं, लेकिन फिर भी सरकार ने 22 करोड़ रुपए की लागत से एक कंसल्टेंसी कंपनी को ऊर्जा सुधार की रणनीति बनाने के लिए ठेका दे दिया है। जबकि सरकार और बिजली कंपनियों के पास पहले से ही विशेषज्ञों और अधिकारियों की बड़ी टीम मौजूद है।
ठेके पर दी गई सेवाएं
इस कंसल्टेंसी कंपनी को राज्य की छह बिजली कंपनियों की स्थिति सुधारने, बिजली आपूर्ति व मांग की योजना बनाने, संयुक्त उद्यम (जॉइंट वेंचर) की रणनीति तैयार करने और ऑनलाइन डैशबोर्ड विकसित करने का कार्य सौंपा गया है।
- यह अनुबंध एक साल के लिए किया गया है।
- हर दिन 6 लाख रुपए खर्च होंगे।
कंपनी द्वारा किए जाने वाले काम
✅ छह बिजली कंपनियों के लिए डिजिटल वॉर रूम और डैशबोर्ड तैयार करना।
✅ बिजली कंपनियों के प्रबंधन की कार्यक्षमता बढ़ाने के तरीके सुझाना।
✅ ऊर्जा क्षेत्र में सुधार की योजना बनाना।
✅ थर्मल पावर प्लांट के संचालन और बिजली वितरण नेटवर्क को मजबूत करना।
✅ बैटरी स्टोरेज प्लांट और अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में पहल करना।
महकमे में चर्चा और उठते सवाल
💬 बिजली विभाग के कई अधिकारी इस फैसले से सहमत नहीं हैं। कहा जा रहा है कि ऊर्जा विभाग का पूरा कामकाज कुछ बड़े अधिकारियों के नियंत्रण में है, जो दिल्ली के संपर्क में रहकर यह फैसले कर रहे हैं।
❓ क्या मौजूदा अफसरों पर भरोसा नहीं?
राजस्थान की बिजली कंपनियों में पहले से ही सीएमडी, प्रबंध निदेशक, तकनीकी और वित्त निदेशक सहित कई अनुभवी अधिकारी मौजूद हैं। तो फिर ऐसा कौन सा काम है, जो वे नहीं कर सकते?
❓ पुनरोद्धार वितरण योजना का क्या हुआ?
बिजली कंपनियों ने पहले ही 28 हजार करोड़ रुपए की पुनरोद्धार वितरण क्षेत्र योजना के तहत केंद्र सरकार को बिजली सुधार का पूरा प्लान भेजा हुआ है। फिर इस ठेके की क्या जरूरत थी?
❓ क्या बिजली चोरी व नुकसान के आंकड़े गलत?
अधिकारियों का दावा है कि बिजली चोरी और नुकसान में कमी आई है। अगर उनकी योजना इतनी अच्छी है, तो फिर सुधार के लिए बाहर से ठेका क्यों लिया जा रहा है?
निष्कर्ष
बिजली कंपनियों में पहले से ही अनुभवी अधिकारी मौजूद हैं, फिर भी सुधार के लिए ठेका देना कई सवाल खड़े करता है। क्या यह खर्च वाकई जरूरी था, या फिर यह सिर्फ अधिकारियों के निर्णय का नतीजा है?