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वायु प्रदूषण: ‘लैंसेट का मौतों से जोड़ने वाला अध्ययन पूरी तरह सही नहीं’ – CPCB ने NGT को बताया

संक्षेप
राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने लैंसेट के एक अध्ययन पर आधारित रिपोर्ट का संज्ञान लिया था, जिसमें कहा गया था कि वायु प्रदूषण से हर साल करीब 33 हजार लोगों की जान जाती है। यह अध्ययन भारत के दस प्रमुख शहरों में किया गया था। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) ने इस अध्ययन के निष्कर्षों पर आपत्ति जताई है।

विस्तार
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) ने राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) में लैंसेट के अध्ययन के निष्कर्षों को खारिज करते हुए कहा कि यह अध्ययन पूरी तरह से सही नहीं है। लैंसेट के अनुसार, वायु प्रदूषण से दिल्ली, अहमदाबाद, बंगलूरू, चेन्नई, हैदराबाद, कोलकाता, मुंबई, पुणे, शिमला और वाराणसी जैसे शहरों में हर साल 33 हजार लोगों की मौत हो रही है। CPCB का कहना है कि मौतों का कारण केवल वायु प्रदूषण को नहीं ठहराया जा सकता। अध्ययन में प्रयोग किए गए सैटेलाइट डेटा और विश्लेषण की तकनीकें भारत की असल स्थिति को सही से नहीं दर्शातीं।

CPCB ने बताया कि इस अध्ययन में 2008 से 2010 के बीच पीएम 2.5 की सांद्रता का विश्लेषण किया गया, और इन शहरों में नगरपालिकाओं के मौतों के आंकड़े जुटाए गए। बोर्ड ने कहा कि इस अध्ययन में कई सीमाएं हैं, जैसे कि भारत में मृत्यु पंजीकरण प्रणाली विभिन्न राज्यों और शहरों में अलग-अलग तरीके से काम करती है, जिससे आंकड़ों में अंतर हो सकता है। इस कारण वायु प्रदूषण से सीधे मौतों को जोड़ना सही नहीं है।

पीएम 2.5 क्या है?
पीएम 2.5 (बहुत छोटे प्रदूषण कण) और अन्य प्रदूषकों का स्वास्थ्य पर बुरा असर होता है। यह सांस से जुड़ी बीमारियों जैसे अस्थमा को बढ़ा सकते हैं। साथ ही, किसी व्यक्ति का स्वास्थ्य आहार, कार्यशैली, आर्थिक स्थिति, चिकित्सा इतिहास, प्रतिरोधक क्षमता और आनुवंशिक कारणों से भी प्रभावित होता है।

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